मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बाद भी क्यों बागी नहीं हुए शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे?

नईदिल्ली ,तीन राज्यों में बंपर जीत के बाद बीजेपी के तीन बड़े नेता किनारे लग गए. छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर बता दिया गया कि उनकी राजनीति अब यहीं तक थी. हालांकि मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे का सियासी भविष्य अब भी बीच में फंसा है. ऐसे में एक सवाल और उठ रहा कि आखिर एमपी-राजस्थान में सीएम नहीं बनाए जाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे ने बगावत क्यों नहीं कीं.
बीजेपी के बागी नेताओं का इतिहास
तीन राज्यों के तीन नए मुख्यमंत्री घोषित होने के बाद से ही सोशल मीडिया पर कई मीम्स वायरल हो रहे हैं. जिसमें कहा गया कि अगर इतनी बड़ी जीत कांग्रेस की हुई होती और कांग्रेस के स्थापित नेताओं को मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर पार्टी टूटकर कई धड़ों में बिखर गई होती.
पश्चिम बंगाल के सीएम ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी इसके साक्षात उदाहरण हैं. इन नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को तोड़कर अपनी पार्टी बनाई और अब अपने-अपने राज्य के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन बीजेपी में इसका ठीक उल्टा है.
बीजेपी में जितने भी कद्दावर नेता बागी हुए, बगावत के बाद या तो उन्हें फिर से बीजेपी की ही शरण में आना पड़ा या फिर राजनीति में वो ऐसे हाशिए पर गए कि उन्हें सियासत से संन्यास ही लेना पड़ा.
केशुभाई पटेल ने की थी बगावत तो…
गुजरात में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री रहे केशुभाई पटेल इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. साल 2001 में जब केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो 2002 चुनाव में उन्हें विधानसभा का टिकट तक नहीं मिला. हालांकि राज्य सभा के जरिए वो केंद्र की राजनीति में गए. लेकिन 2007 में उन्होंने पार्टी से बगावत कर दी और विधानसभा चुनाव में अपने समर्थकों से कांग्रेस को वोट देने की अपील की.
उन्होंने तब बीजेपी की अपनी सदस्यता भी रिन्यू नहीं करवाई और साल 2012 में बीजेपी छोड़कर नई पार्टी गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई. उस चुनाव में अपनी पार्टी से जीतने वाले वो एकलौते विधायक थे. तब उन्होंने विसवदर विधानसभा से बीजेपी के कनुभाई भलाला को मात दी थी.